एक गजल रुहानी

एक गजल - रुहानी
*********************
क्योंकर सज़ा रहा अरे परछाईयों के घर
जागोगे जान जाओगे.... सपने हैं बेअसर
***********************************
कुछ साँस ले रहे हैं ......ज़माने के वास्ते
हम मरे जा रहे हैं.. अपनी ही फ़िक्र कर
**********************************
ग़ैरों की शक्ल में भी जो ख़ुद को देखता
ग़ैरों को जान बख्शे अपनी निकालकर
**********************************
उस साधुताको... कोई नही पूछता यहाँ
जिस साधुता का मोल नही राजद्वार पर
**********************************
जिसके लिए बदन हो किराये का इक मकान
उसको न चाहिए कुई चादर मज़ार पर
****************************
- अरुण

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के