दो रुबाई

दो रुबाई आज के लिए
**********************
चुटकी की ही पकड में...फूला हुआ गुबारा
पसरा है वक़्त उसमें दुनिया का बन नज़ारा
अक्सर ग़ुबार में ही इंसा भटक रहा है
चुटकी से हट गया है इंसा का ध्यान सारा
****************************************
नींद में गड्डी चलाये ही चला जाता है
बिन टकराए रास्तों से गुज़र जाता है
फिरभी अन्जाम...हादसा ही न बच पाये कुई
कुई घायल नही.. ऐसा न नज़र आता है
************************************
- अरुण

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के