दो रुबाई आज के लिए

दो रुबाई आज के लिए
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फलसफों में बहकना बेकार है
मज़हबी हर सूचना बेकार है
जिंदगी को ज़िंदा रहकर देखिए
उसके बाबत सोचना बेकार है
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पेड़ है... नीचे परछाई है
समझती.. खुदही उभर आई है
सोचे...पेड़ के बग़ैर भी वह ज़िंदा रहे
सोच ऐसी ही....... इंसा में भी बन आई है
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- अरुण

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