कुछेक पेश हैं
कुछ शेर पेश हैं
****************
अबतक तो माज़ी* ही है ज़िंदा
मै हूँ...तो कहाँ ?... न ख़बर मुझको
------------------------------
कब आदमी की आदमी से होगी मुलाक़ात ?
अभी बस मिल रहे हैं..आपसी तआरुफ़*
-----------------------------------------
बड़ा मुश्किल गुज़रना आलमी रिश्तों की गलियों से
कभी वे फूल जैसे तो कभी काँटों से भी बदतर*
-----------------------------------------------
माज़ी = गुज़रा वक़्त, तआरुफ़ = परिचय, बदतर = बहुत ख़राब
अरुण
****************
अबतक तो माज़ी* ही है ज़िंदा
मै हूँ...तो कहाँ ?... न ख़बर मुझको
------------------------------
कब आदमी की आदमी से होगी मुलाक़ात ?
अभी बस मिल रहे हैं..आपसी तआरुफ़*
-----------------------------------------
बड़ा मुश्किल गुज़रना आलमी रिश्तों की गलियों से
कभी वे फूल जैसे तो कभी काँटों से भी बदतर*
-----------------------------------------------
माज़ी = गुज़रा वक़्त, तआरुफ़ = परिचय, बदतर = बहुत ख़राब
अरुण
Comments