दो रुबाई आज के लिए

कहते हैं- लफ़्ज़ों में कोई ज्ञान नही है
सुना है कि.... रूहे आलम के सामने देह का कोई मान नही है
पर ख़्याल रहे कि धरती नही होती तो आसमां नही दिखता
इस पूरी हक़ीक़त का हमें ध्यान नही है
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सब जिंदगी और मौत के दरमियाँ उलझे
शामे ग़म को सुनहरे अरमां उलझे
लाज़मी गर उलझना.. बार बा उलझो
उलझो ऐसे कि परिंदों से आसमां उलझे
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- अरुण

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