एक अटपटा सा लगता विचार
एक अतर्क्य परन्तु प्रतिकात्मक
सत्य-वचन के
उच्चार का साहस कर रहा हूँ
यह वक्तव्य गहरे चिंतन से फला है
जिन्हें अध्यात्मिक प्रक्रिया में
रूचि है वे इस पर
गौर कर सकते हैं
.........
उजाला जान लेता है
उजाला
अँधेरा खोजता हो पर
नही पाता उजाला
...
कहने का तात्पर्य यह है की
जिनकी दृष्टि सांसारिकता के
आकाश से होते हुए
अध्यात्म के अवकाश में प्रविष्ट हुई
उन्हें ही जीवन दर्शन
संभव हो पाता है
बाकी लोग
सांसारिकता के ही तल पर
बैठे बैठे
अध्यात्म का अनुमान लगाते
दिखते हैं
उनकी दृष्टि सांसारिकता में ही
स्थिर रहती है भले ही वे लोग
बातें ऊँची ऊँची करते हों
....
मतलब कि गीता जिस स्थिति की ओर
संकेत करती है
उस स्थिति में जो पहुँच गये
उन्हें ही गीता समझ आती है
बाकी सब
गीता पढकर अनुमान की
भाषा बोलते दिखते हैं
................................ अरुण
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