टुकड़े से लिपटा है

नदी बहती है

किनारे भी बहते हैं

साथ जीवन क्षण-धारा के

सांसो के तट भी बहते हैं

खींच कर रेखाएँ बाँट दी सारी धरती

इधर की प्राण-प्रीय उधर की पराई

सारा का सारा यह जगत का पसारा यह

उसका ही घर है यह सारा का सारा यह

टुकड़ों में जो सोचे टुकड़ों में बंटता है

सारे को छोड़ व्यर्थ टुकड़े से लिपटा है

...................................... अरुण

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