सब उसी का तो है
नदी बहती है
किनारे भी बहते हैं
साथ जीवन क्षण-धारा के
सांसो के तट भी बहते हैं
तूफानी हवा पर उडता पत्ता
और उसपर खड़ा यह जीव
जो व्यर्थ ही परेशान है अपनी
सुरक्षा को लेकर
यह तूफान भी उसी का, पत्ता भी उसी का
और यह छटपटाता जीव भी उसी का तो है
...................................... अरुण
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