छोड़ दोगे गर किनारे.........

छोड़ दोगे गर किनारे जिंदगी बह जाएगी

जिंदगी के दांव पर तो जिंदगी लग जाएगी

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पन्ना पन्ना जल गया किस्सा पुराने वक्त का

खाक को दर से हटाते जिंदगी कट जाएगी

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खुद को बहलाने चला आया इसी बाजार में

क्या पता था मुझको मेरी जिंदगी बिक जाएगी

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इक खयाली गुल खिलाना रेत की दीवार पर

कौन देगा ये भरोसा, जिंदगी खिल जाएगी

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जिस तरह हर राह पर परछाइयाँ पाती सुकून

बस उन्ही परछाइयोंसी जिंदगी ढल जाएगी

........................................................... अरुण

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