भ्रष्टाचार-विरोध – एक अजीबसा उपहास

भ्रष्टाचार यह शब्द

व्यापक अर्थ में लिया नही जाता

एक सीमित सन्दर्भ में ही

इस शब्द को प्रयोग किया जा रहा है

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अपने दैनिक जीवन में कुरीतियों से भरे

एवं सामाजिक अन्याय

करने/सहने वाले और

सामाजिक एवं राजनैतिक मूल्यों के

नाम पर अपनी दुष्ट एवं स्वार्थ भरी मन्शा को

पूरी करने वाले लोग भी

आर्थिक भ्रष्टाचार के दिखाऊ-विरोध में

इकठ्ठा हो कर आन्दोलन का नाटक करते दिखते हैं

दरअसल भ्रष्टाचार जीवन की जरूरत बन चुका है

श्वांस-श्वांस में भ्रष्टाचार है

और हांथो में हैं

भ्रष्टाचार-विरोधी तख्तियां,

यह है एक अजीबसा उपहास

............................................. अरुण

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