पूर्णत्व का भान ही सत्य-ज्ञान
मूलतः सामने का
परिदृश्य या वस्तु या रास्ता
बिलकुल साफ साफ दिखता हो तो
किसी भूल या दुर्घटना या भटकाव का भय नही रहता
सार यह की जब दृष्टि में स्पष्टता हो तभी
आदमी स्वयं को उपर्युक्त भय से मुक्त महसूस करता है
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जीवन के सफर में
देखने का काम केवल आँखें हीं नही करती
तो जानकारी, समझ, तार्किक सोच,
चिंतन-मनन, विश्लेषण जैसे साधनों का
आदमी उपयोग करता रहता है
परन्तु इन सभी का उपयोग तभी
सटीक और सही होगा
जब परिदृश्य पूरी तरह सामने खड़ा हो,
आदमी की दृष्टि और समझ से कुछ भी
छुपा न हो
परिदृश्य की व्यापकता और सघनता
अगर स्पष्ट हो तो
बातें भी साफ साफ अवगत होती हैं.
ऐसी ही स्पष्टता को ज्ञान या सत्य कहेंगे,
परिदृश्य की आंशिक समझ को
अज्ञान या असत्य कहना होगा
........................................................................ अरुण
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