गजल – आग से उठ्ठा हुआ
खोजना है आग, कैसे पा सकूं ?
मै धुआं हूँ आग से उठ्ठा हुआ
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सोये हुओं के धर्म का आधार क्या
खाब उनको नींद में दिख्खा हुआ
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नाम बाहर से गया टांका मगर
घुस गया भीतर बड़ा पुख्तः हुआ
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पेड तो अपनी जगह ही मस्त है
जंगलों की गोद में रख्खा हुआ
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राह से जो जा चुका उस वक्त से
हाय, क्योंकर मै अभी लटका हुआ
................................................ अरुण
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