तात्पर्य गीता अध्याय १७

वही भाव श्रद्धा हुआ जो सत् के संग होत /

भक्त वही जो कर्म को सुश्रद्धा से बोत //

ॐ-तत-सत् यह घोषणा, ब्रह्मरूप स्वीकार /

शेष नही कर्ता कुई, सभी ब्रह्म परिहार //

................................................ अरुण

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