गलतियाँ जनता भी कर रही है

वास्तव में, हमारी चुनाव पद्धति प्रतिनिधियों के चयन का काम आंशिक रूप से कर रही है (क्योंकि वोटिंग का प्रतिशत बहुत कम है) और सही प्रतिनिधित्व दिलाने के काम में तो पूर्णतः विफल हुई लगती है क्योंकि हमारे प्रतिनिधि हमारी आवाज को संसद तक पहुंचाने के बजाय अपने स्वयं का अस्तित्व बचाने, अपने पार्टी का हित देखने और अपने व्यक्तिगत हित के लिए किये जाने वाले कारवाइयों से ही अधिक जुड़े दिखते हैं. यही कारण है कि अन्नाजी के जन-आंदोलनों जैसे कई जन-आंदोलनों की देश को जरूरत है.

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परन्तु जन-आंदोलनों को भी बहुत सतर्कता के साथ चलाना होगा. क्योंकि हो सकता है कि जिस तरह सांसदों की खरीद-विक्री होती है वैसी ही जन-अन्दोलकों की भी होने लगे.. कहीं पक्षीय-राजनीति का रोग इन समाज-संगठनों को भी न जकड ले

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संक्षेप में, उपाय कई हो सकतें हैं परन्तु जन-जागरूकता का कोई विकल्प नही. अगर प्रतिनिधि गलत हैं तो मतलब गलतियाँ इस देश की जनता भी कर रही है, इस तथ्य को नजर अंदाज न किया जाए.

.......................................................................................................................................................... अरुण

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