तात्पर्य गीता अध्याय १५

इस संसारी चित्त में, वृक्ष कल्पना एक /

उलटा टंगता मनस पर, स्वप्न- रौशनी फेक //

स्वप्न-रौशनी गुल हुई माया का हो नाश /

क्षर-अक्षर के पार ही, दिखता ब्रहम प्रकाश //

................................................ अरुण

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के