भीतरी भाव का ही प्रभाव
जो भी भीतर भाव जागे,
उसका ही प्रभाव आगे आचरण में
व्यक्त होता हुआ दिखता है.
उत्क्रांति और सामाजिक प्रकिया
के आधीन रहा हर आदमी,
जन्म से कुछ ही दिनों के बाद
भीतर विभाक्ति-भाव जाग उठते ही,
अपने को भिन्न अस्तित्व के रूप में
देखता-समझता है. इसी भिन्नत्व भाव के कारण
उसे जिंदगी भर संघर्ष से होकर गुजरना पड़ता है
-अरुण
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