जिंदगी के दो समानांतर रास्ते


आदमी की जिंदगी
दो समानांतर रास्तों से गुजरती है,
सांसारिकता और अस्तित्वता,
यही वे दो रास्ते हैं.
दोनों एक दूसरे से पूरीतरह अलग और
अछूते होते हुए भी, चुंकि एक साथ और
एक संगती में चलते हैं,
लगता है कि
दोनों एक दुसरे के मिलेजुले अंग है
अस्तित्व से आदमी जन्मता है.
अपने जीवित प्राणों के साथ जीता है और
प्राणों के बंद होते ही निष्प्राण अस्तित्व के रूप में
बना रहता है
परन्तु संसार का जन्म,
जन्मे हुए आदमी के अस्तित्व के
आतंरिक संवाद से फलता है
और प्राणों के लुप्त होते ही
वह लुप्त हो जाता है
-अरुण    

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