‘स्वयं’ को जानना
‘स्वयं’ को जानने की बात जब होती है,
समझ में एक भूलसी घटती है
ऐसा ‘जानना’
‘स्वयं’ और उसे ‘जाननेवाला’
इन दो टुकड़ों में बटा हुआ लगता है
जबकि स्वयं को जानना
एक ऐसी बात है जिसमें
‘स्वयं’
(एक ही पल और दृष्टि में)
अपना कर्तापन, कार्य, परिणाम और
Intrinsic (अंतर्भूत) अस्तित्व को
निहार लेता है
-अरुण
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