सकल अस्तित्व अभेद्य है


सकल अस्तित्व एक का एक,
अभेद्य है
फिर भी आदमी
उसे टुकड़ों में बाटने की चेष्टा
कर रहा है,
जो बट नही सकता उसे भी बाटने
का आभास पैदा कर देता है
अँधेरा-उजाला, यहाँ-वहाँ, अभी-तभी,
ध्यान-अध्यान जैसे
मायावी उपाय
भेद का भाव जगा देते हैं
ॐकार यानी आकार-निराकार के
परे वाली जो स्थिति है,
आदमी ने उसमें बुद्धि-प्रयोग द्वारा
अनगिनत ध्वन्याकर (शब्द) पैदा
कर दिये हैं
-अरुण    

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