सत्य-कथन


सत्य-कथन के लिए
सुसाहस की जरूरत है
परन्तु समाज क्या सोचेगा? या
समाज के प्रस्थापित मूल्यों के समर्थन में
आम लोग कहीं नाराज न हो जाएँ-
इस भय से भी
सत्य-कथन को टाल दिया जाता है
या उसपर मीठे-झूठ का
मुलामा चढा दिया जाता है

अंधविश्वास फैलाने वालों के खिलाफ
आवाज उठती है तो यह  ठीक ही है,
परन्तु अविश्वास स्वीकारने वाली आम जनता के
खिलाफ आवाज उठाने का ढाढस तो पत्रकार भी नही करते.
सब लोग ढोंगी बाबाओ की निंदा करते हैं
परन्तु इन ढोंगियों के ग्राहक
यानी अज्ञानी लोगों की (जिनकी संख्या बहुत है)
कोई भी खुलकर निंदा नही करता
- अरुण    

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के