समाज की न्याय-व्यवस्था


समाज की न्याय-व्यवस्था
कितनी ही प्रगतिशील और
मानवतापूर्ण क्यों न हो.
समाज का ही पक्ष लेते हुए
न्याय प्रदान करती है. उसी के आधार पर सजा का
निर्धारण करती है.
परन्तु इस व्यवस्था को यह हक नही है
कि वह इस बात का धैर्य और ख्याल रखे कि
व्यक्ति को दी जानेवाली सजा
कहीं व्यक्ति के अन्तः-परिवर्तन की
प्रक्रिया में बाधा तो नही बन रही.
इसका मूल कारण यह है कि
न्याय-व्यवस्था अपराध से पीड़ित
व्यक्ति या लोगों को न्याय दिलाने के
विचार से ही बंधी हुई है, उसे घोषित अपराधी के
भविष्य में परिवर्तन की
संभावन का विचार करने की कोई आजादी नही है
-अरुण

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