भाव अलगाव का
अस्तित्व का हर कण -
कण नही बल्कि सकल अस्तित्व ही है
परन्तु जब उसमें अपने अलग होने
या अलगाव का भाव जागता है
वह एक स्वतन्त्र इकाई के रूप में
अहम भाव से विचरने लगता है
जहाँ अलगाव जागा,
स्व-बचाव, स्व-संवर्धन, हिंसा, स्वार्थ, मोह,
स्पर्धा, महत्त्वाकांक्षा जैसे भावों का
जागना लाजमी है
-अरुण
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