यहीं मौजूद है ये जिस्त
यहीं मौजूद है, उसमें ही माजी को बसाया है
यहीं मौजूद है, उसपे ही सपनों को टिकाया है
नपे जाता हूँ माजी को, पिरोकर गत मरी सांसे
नपे जाते है सपने भी अजन्मी सांस को सोचे
यहीं मौजूद है ये जिस्त, जिन्दा पवन दिखलाती
पढ़े पन्ने पलट देती नयों को सामने लाती
(जिस्त = जिंदगी)
-अरुण
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