अंतःकरण की समझ से ही ज्ञान फलित



इन्द्रियों एवं भीतर की प्रति-इन्द्रियों को
पूरी की पूरी सृष्टि
दिखाई नहीं देती.
परन्तु ऐसी अपूर्ण सृष्टि ही
पूरी की पूरी सृष्टि है, - ऐसा
देखे जाने के कारण ही
भूल यानि अज्ञान फलित होता है.
जो दिखता है उसमें ही अन्तःकरण से
(बाह्य या प्रति-बाह्यकरण से नहीं)
जब पूर्ण की समझ जागती है तो
ज्ञान फलित होता है
-अरुण

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