अस्तित्व निर्भाव है



अस्तित्व भले ही भरापूरा लगता हो
पूरी तरह से निर्भाव है,
इसमें कहीं भी अगर
कल्पना द्वारा कोई भाव विशेष
आरोपित हो जाए तो  
उस भाव-विशेष के प्रभाव का
दिखना भी लाजमी हो जाता है

इस शरीर में जो पूरीतरह से निर्भाव है,
अहम्-भाव आरोपित होते ही
इसका सारा जीवन
अहम्-भाव के
प्रभाव से ही संचालित हुआ दिखता है
-अरुण    

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के