वास्तव में कोई भी कथन अपने आप में पूरा नहीं है


अध्यात्मिक संकल्पनाओ या phenomenon को समझाकर बताने में काम में हमारी भाषा अपर्याप्त है, अपर्याप्त ही नहीं, इस काम में वह कई बार विफल भी हो जाती है.

उदहारण के लिए –प्रवचनकार कथन करता है कि- वासना के आते है उसके पीछे पीछे दुःख की परंपरा शुरू हो जाती है.
इस कथन को सुनकर, समझने की कोशिश में लगा श्रोता उसके मन में कार्य-कारण (chain of cause and effect) की शुरुवात, वासना के phenomenon को ठीक से देखे बिना ही, ‘वासना’ से करने लगता है.
जबकि उपर्युक्त कथन पर चिंतन करने के लिए उसे वासना कहाँसे और कैसे आती है, इसबात की भी  पूरी समझ जरूरी है.
वास्तव में कोई भी कथन अपने आप में पूरा नहीं है.
-अरुण   
 

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