चूँकि, परछाई मुझे मेरी लगती है .....



यह तो सूरज है जिसके
सामने जब मै खड़ा हो जाता हूँ,
आगे जमीन पर परछाई फैल जाती है,  
जैसे जैसे सूरज मेरे ऊपर से गुजरने लगता है ,
परछाई सिकुड़ती और फिर जब
सूरज पीछे आता, तो फिर फैल जाती है.

चूँकि मुझे लगता है कि यह मेरी परछाई है,
मेरी मनोदशा का फूल
इसके फैलाव और सिकुडन से
बंध चुका है,
फैलाव देख फूल खिलता है,
सिकुडन देख मुरझा जाता है
-अरुण   

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