अभिव्यक्ति का अधिकार



रोटी कपड़ा मकान और ऐसी ही
कई बातों के अलावा मनुष्य को अधिकार है
कि वह अपनी अप्रसन्नता या आलोचना को अभिव्यक्त कर सके

अगर आप अपने को हांथी-शेर जैसे बलशाली
समझते है तो दूसरों द्वारा की गई आलोचना को ‘भोंकना’ समझकर
भुला दीजिए

अगर आप के भीतर भी कुत्ताभाव जाग उठा हो
तो आप भी ‘प्रति-भोंकिए’

और अगर मनुष्य जैसी समझ आपमें हो तो
तो दूसरे के ‘भोंकने’ को अप्रसन्नता या आलोचना समझकर
उसपर शांति से गौर कीजिए
-अरुण 
   

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के