भाषा द्वैत की, परन्तु आध्यात्म है अद्वैती
हमारी
भाषा और उसका व्याकरण
द्वैत
(कर्ता-क्रिया-कर्म ) और
काल
(भूत,वर्तमान और भविष्य)
को
दर्शानेवाले नियमों से गढ़ा गया है.
परन्तु
आध्यत्मिक अनुभूति के बारे में
होनेवाली
अभिव्यक्ति में
इन
नियमों का पालन होने से
अभिव्यक्ति
त्रुटिपूर्ण और चूक करनेवाली
बन
जाती है.
आध्यात्मिक
अनुभूति में कर्ता ही कर्म है,
क्रिया
और कर्ता में कोई भेद नहीं है.
वैसे
ही, आध्यामिक संवेदना के अंतर्गत,
वर्तमान,
भूत और भविष्य
एक
ही अनुभूति क्षण में
विद्यमान
रहते है
हमारी
भाषा द्वैत और समय विभाजन की
सूचक
होने के कारण
आध्यात्मिक
अभिव्यक्तियों के लिए अक्षम है
-अरुण
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