समाधी -व्यक्तित्व से हटकर फिर एकांत की ओर



अपने जन्म से ही
हरेक व्यक्ति अंतःएकान्त में होता है.
इस एकांत में वह समग्र सृष्टि
में समाहित होते हुए
सारा जीवन जीता रहता है
परन्तु जैसे ही वह भीड़ का हिस्सा बन जाता है
उसका अलग व्यक्तित्व खिल उठता है और उसे
अपनी एकांत अवस्था का विस्मरण हो जाता है
व्यक्तित्व से हटकर फिर एकांत का बोध होना ही
समाधी है
-अरुण   

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