यन्त्र, मंत्र और तंत्र यानि शरीर-मन और जागरण
विकास की संभावनाओं से युक्त
यंत्र (शरीर ) जन्म लेता है
समाज
का मंत्र (संस्कार) उस पर पड़ते ही
उसमे
मन जागता है और शरीर को
एक
कामचलाऊ स्व-तंत्र प्रदान करता है.
परन्तु
अगर ‘जागरण’ (तंत्र) आ जाए
तो
फिर शरीर अपने पर डाले गए मंत्र से
मुक्त
होकर अपने स्वभाव में लौट जाता है
अन्यथा
अपनी मृत्यु तक
मंत्र
के बंधन में बंधा रहता है
-अरुण
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