जियो तो ऐसे जियो जैसे सब तुम्हारा हो ...



साहिर साहब पर भले ही साम्यवादीता का
लेबल चिपका हो पर उनका अंतरंग
शुद्ध रूपेण सकल से जुडा था.
तभी वे कह सके ......
जियो तो ऐसे जियो जैसे सब तुम्हारा हो
मरो तो ऐसे मरो जैसे तुम्हारा कुछ भी नहीं ....
..
दोनों ही अवस्थाएं अभेद या अद्वैत की सूचक हैं,
जीना तो परिपूर्णता से और मरना तो... वह भी
परिपूर्णता से, ताकि किसी भी स्थिति में
अपनी स्वतन्त्र पहचान पूरी तरह खो जाए
-अरुण  

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