संबंधों में पीड़ा है और मिलन में है आनंद
साधारणतया
हर आदमी संबंधों की दुनिया में जी रहा है.
संबंध
जैसे भी हों आदमी.. किसी न किसी पीड़ा से ग्रसित है.
टकराने
वाले से टकराने में.. टकराहट की पीड़ा है,
किसी
के आक्रमण के सामने झुक जाने में... पलायन की पीड़ा है,
मतलब
के लिए हाँथ मिलाने में मजबूरी की पीड़ा है
झुकने
वाले के साथ झुक कर रहने में निष्क्रियता की पीड़ा है
पीड़ा
केवल उस अवस्था में नहीं जहाँ आन्तारिक मिलन हो,
एक
का दूसरे में पूर्ण विलय हो,
न
हो कोई संघर्ष, न पलायन, न मजबूरी और न निष्क्रियता.
-
अरुण
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