शुद्ध बोध या चेतना



पारस पत्थर होता है या नहीं –
मालूम नहीं पर
इतना निश्चित है कि
यह ‘होना’ (शुद्ध बोध या चेतना) जिसे भी छूता है
वैसी ही बन जाता है. जब हम सोचते या कहते हैं कि
‘मै आदमी हूँ, हिन्दू हूँ, युवक हूँ, भारत का हूँ’
तो इन सब स्थितियों में ‘हूँ-पन’ या ‘होना’ (mere being ) ही केवल है,
अस्तित्व में मै-पन, आदमीपन, हिन्दूपन, युवकपन या
भारतपन .. इन सब को कोई स्थान नहीं
-अरुण       

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के