बैर को युद्ध भूमि में ही स्पष्टता से उजागर कर
दिखलाया जा सकता है, क्योंकि वह वहाँपर
पूरीतरह उघाड़ा एवं ऊर्जापूर्ण होता है ।
गीताकार को यह बात शायद पता हो
- अरुण
धीमी-धीमी मृदुल हवा से गतिमान समन्दर की लहरें हों या बवंडर से आघातित ऊँची ऊँची उछलती लहरें समन्दर की लहरों में हमेशा ही एक लय बद्धता है उनमें कोई आतंरिक संघर्ष नही सभी लहरें एक ही दिशा में एक ही ताल, रिदम में चलती, उछलती हुई परन्तु मन की लहरें आपस में ही भिड़ती, एक दूसरे से जुदा होते हुए अलग अलग दिशा में भागती तनाव रचती, संघर्ष उभारती मन की लहरें समन्दर की लहरों के पीछे एक ही निष्काम-शक्ति है मन की लहरों के पीछे परस्पर विरोधी इच्छा-प्रेरणाएँ ............................................................. अरुण
राह चलता यात्री जो दृश्य जैसा है वैसा ही देखे तो उसे नदी नदी जैसी, पर्वत पर्वत जैसा, चन्द्र- चंद्र की तरह और सूर्य में- सूर्य ही दिखाई देगा परन्तु यदि दृश्य पर पूर्वानुभवों, पूर्व-कल्पनाओं और पूर्व-धारणाओं का साया चढाकर यात्रा शुरू हो तो शायद नदी लुभावनी परन्तु पर्वत डरावना लगे चंद्र में प्रेमी की याद तो सूर्य में आग का भय छुपा दिख जाए सारी सीधी सरल यात्रा भावनाओं और प्रतिक्रियाओं से बोझिल बन जाए ................................................................ अरुण
कहना उन्हें फिजूल सुनना जिन्हें सजा है वैसा भी कह के देखा., जैसा उन्हें रजा है लफ्जों की कश्तियों से बातें पहुँच न पाती इक साथ डूबने का कुछ और ही मजा है ............................................. अरुण
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