देह–मन-प्राण से संग
“देह के जाले को, मनस का कीड़ा
दो सांसो के बीच, जगत की पीड़ा”
इस मूल सूत्र को जिसने तत्व से जान या देख लिया
वह पाएगा की वह हमेशा से ही बन्धनों के पार है
सारे बंधन माने हुए हैं, देह–मन-प्राण से संग
केवल मान्यता के कारण ही है. इस कल्पना के
चलते ही सारे बंधन सता रहे हैं
-अरुण
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