जीवन प्रतिजीवन

मै हँू और इसीलिए यह जगत है,
मुझमें जगत और जगत में मैं हूँ,
दोनों का होना ही एक का होना है।
ऐसे होने का अनुभव ही जीवन है,
बाकी सब है- प्रतिजीवन
- अरुण

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