भक्ति बनाम निर्भरता
भक्ति
किसीपर निर्भर हो जाना नहीं,
दूसरे
में सम्मिलित हो जाने का नाम है.
सम्मलेन
में गुरु-शिष्य, बड़ा-छोटा, महाराज-भगत ...
इस
तरह के रिश्ते नहीं होते,
सम्मेलन
में सभी घटक एक दूसरे में
समर्पित
सक्रियता के साथ बसते हैं
-अरुण
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