तब पता नहीं क्या होता होगा ?



समानअर्थी शब्दों का उपयोग करते हुए
यह कहना होगा कि
आत्मा-साक्षी-बोध-जागृति या Total Awareness
(या ईश्वर) निरावारण है.
साधन के रूप में जबतक ध्यान का उपयोग होता रहता है,
यह किसी न किसी आवरण में ही हुआ प्रतीत होता है.
ध्यान की ऊपरी सतह पर
यह अहंकार-धारी शरीर, मस्तिष्क या मन का आवरण पहने दिखता है
ध्यान की भीतरी अवस्था में यह निरहंकारी ‘सकल-जीववस्तु-जगत’ का
चोला पहने होता है
परन्तु जब ध्यान और साक्षी एक हो जाते हैं
तब पता नहीं क्या होता होगा ?
- अरुण  

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