भीतर हिंसा चल रही.....

सब बाहर के क़ायदे,कित हों चुस्त हुशार ।
भीतर हिंसा चल रही, नफ़रत की तलवार ।।
---- अरुण
आदमी अपनी बाहरी.. सामाजिक, राष्ट्रीय, नैतिक, आर्थिक, प्रशासकीय, विकासकीय.... सभी तरह की व्यवस्थाओं को भले कितना ही चुस्त दुरुस्त क्यों न रखे, भीतरी मानसिक दुर्व्यवस्था उसे परास्त करती आयी है और करती रहेगी । जागे हुए लोगों से प्रेरित होकर हज़ारों बार आदमी की जात ने भीतरी रूपांतरण लाना चाहा मगर हर  प्रयास अपने ही बोझ तले मुर्दा बनकर रह गया । बाहर सब ठीकठाक होते दिखा मगर भीतर क़ायम रही आदमी की व्यथा ।
- अरुण
 

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