मानवता चहुँओर

मानवता चहुँओर
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गंध का काम है फैलना चहंुओर
'अपने पराये' का कोई नही ठोर
जिसको सुगंध लगे पास हो आवेगा
जिसको सतायेगी दूर भग जावेगा
गंध तो गंध है... होती निर्दोष
चुनने में दोष है, चुनना बेहोश
मानव में मानवता हरपल महकती है
करुणा को भाये वो स्वारथ को डसती है
- अरुण

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