तीन पंक्तियाँ में संवाद
तीन पंक्तियों में संवाद
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नफरत निभाई जाती है, संग... दोस्त के
जिससे हो वास्ता उसीसे हो घृणा
+++++
भावना का विश्व है बड़ा पेचीदा
.....................
मन न कभी मन को मिटा पाया
कलम न कभी लिखे को मिटा पाई
+++++
मन ही मन रचे समाधानों से काम चलाया जाता है
........................
अभी ईश्वर को जानने की जल्दी नही है
हाँ, "मै उसे मानता हूँ"- ये ख्याल ही ईश्वरसा है
इसीलिए खोजी कम और आस्तिक बहुत हैं
- अरुण
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नफरत निभाई जाती है, संग... दोस्त के
जिससे हो वास्ता उसीसे हो घृणा
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भावना का विश्व है बड़ा पेचीदा
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मन न कभी मन को मिटा पाया
कलम न कभी लिखे को मिटा पाई
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मन ही मन रचे समाधानों से काम चलाया जाता है
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अभी ईश्वर को जानने की जल्दी नही है
हाँ, "मै उसे मानता हूँ"- ये ख्याल ही ईश्वरसा है
इसीलिए खोजी कम और आस्तिक बहुत हैं
- अरुण
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