पूरे में उपस्थिति

पूरे में उपस्थिति
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जो पूरे के पूरे आकाश में उपस्थित है वह आकाश के किसी भी अंश में न उलझते हुए उसे देख सकता है । जो किसी अंश में ही ठहरा है वह पूरे आकाश को देखना तो क्या ?.. उसकी कल्पना तक नहीं कर सकता ।
यह बात मनुष्य की चेतना से ताल्लुक़ रखती है ।
- अरुण

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