विचार Vs ध्यान

जिसे चलते रहने की आदस सी पड गई हो या यूँ कहें कि चलना जिसका स्वभाव या स्वरूप बन गया हो.. वह कहीं भी ठहर नही पाता । बात मन की हो रही है । भीतर झांककर देखें.. मन विचार पर बैठकर चलता ही रहता है ... विचरता ही रहता है । स्वस्थ नही रह पाता.. यानि स्व स्थान पर बना नहीं रह पाता । जो ध्यानमग्न हो रहा...वही स्वस्थ हो पा रहा । मतलब..चित्त के स्वास्थ्य का रहस्य ध्यान में निहित है, विचार में नही ।
विचार... किसी पूर्वनियोजित गंतव्य की ओर, पहले से बनी भूमि पर ( स्मृति-अनुभव-ज्ञान) विचरते हुए.. पहुँचने का तरीक़ा है । ध्यान है..अपनी ही जगह ठहरते हुए अपने पूरे के पूरे अपरिचित अंतस्थ पर जाग जाने की घटना जो विचार की अनुपस्थिती में ही संभव हो पाती है । विचार का सहारा है..निद्रा जिसके टूटने पर ही प्रस्फुटित होती है जाग ।
- अरुण

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