सत्यम् शिवम् सुंदरम्

साधारणतया, किसी भी वस्तु, व्यक्ति या दृश्य को देखते ही कोई शाब्दिक,भावनिक आंदोलन...चाहे खुला हो या सुप्त....होने लगता है । मानो देखने और आंदोलन के बीच समय की gap हो ही न, ऐसा आभास होता है । इस कारण चित्त  'केवल और केवल देखना'- ऐसी प्रतीति से वंचित रह जाता है ।  देखना और देखनेवाला-  जिस जागे चित्त को.. एक अभिन्न प्रवाह से हों, उसे ही सुंदर और मंगल का सत्य दर्शन हो पाता है ।
- अरुण

Comments

Manoj Kumar said…
सुन्दर रचना !
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