इंसान का सिकुड़ता दिल
सच है कि तूफ़ानी हवाएँ क़हर ढातीं हैं
तो यह भी सच है कि...क़ुदरत तो सबकी है..
सो तूफ़ानों को भी...झूमने का मौक़ा देती है
क़ुदरत की अनंत असीम दुनिया में
जो भी होना है, होता है और फिर भी..
किसी को किसी से..कोई शिकायत नहीं होती
और न ही होती है किसी को किसी से कोई उम्मीद
कोई भी किसी के आड़े नही आता
और न ही कोई जतलाता है...किसी बात की मेहेरबानी
क़ुदरत के ज़र्रे ज़र्रे से बहती है करुणाभरी मुहब्बत की धार
जहाँ सबकुछ जीवंत है, जी रहा है ख़ुद के लिए ही नही, सबके लिए
इंसान भी इसी लीला का एक हिस्सा है फिर भी उसमें
जागा है ख़ुदगर्ज़ीभरा एक जेहनी भूत जिसे... कैसे पता हो कि
क्या होती है करुणाभरी मुहब्बत ?.... और इसीलिए शायद जिस जगह है
क़ुदरत की पसरती दरियादिली.... वहीं रहता है इंसान का सिकुड़ता दिल
मगर, इससे भी किसी को कोई शिकायत नही
- अरुण
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