सत्यम् शिवम् सुंदरम्
साधारणतया, किसी भी वस्तु, व्यक्ति या दृश्य को देखते ही कोई शाब्दिक,भावनिक आंदोलन...चाहे खुला हो या सुप्त....होने लगता है । मानो देखने और आंदोलन के बीच समय की gap हो ही न, ऐसा आभास होता है । इस कारण चित्त 'केवल और केवल देखना'- ऐसी प्रतीति से वंचित रह जाता है । देखना और देखनेवाला- जिस जागे चित्त को.. एक अभिन्न प्रवाह से हों, उसे ही सुंदर और मंगल का सत्य दर्शन हो पाता है ।
- अरुण
- अरुण
Comments
मेरे ब्लॉग पर आये और फॉलोवर बनकर अपने सुझाव दे !