'जहाँ धुआं वहाँ आग निश्चित'
ऊपर लिखे अनुमान तंत्र का सहारा लेकर
कई प्रश्नों के उत्तर ढूंढे जाते हैं
परन्तु अहंकार क़ी खोज में इस अनुमान से हम
चूक जातें हैं
हम अहंकार को आग समझतें हैं
दरअसल अहंकार आग नही धुआं है
व्यक्तिगत देह और सामाजिक परिवेश क़ी
अंतःक्रिया या अन्तःसम्पर्क से मन क़ी
आग जन्म लेती है
शरीर में है मन की सुलगती आग --
अहंकार उसी आग का अपरिहार्य धुआं है
सारा अंतर ध्यान मन को देखे अहंकार को
पकड़ने क़ी कोशिश काम की नही
.............................................. अरुण
कई प्रश्नों के उत्तर ढूंढे जाते हैं
परन्तु अहंकार क़ी खोज में इस अनुमान से हम
चूक जातें हैं
हम अहंकार को आग समझतें हैं
दरअसल अहंकार आग नही धुआं है
व्यक्तिगत देह और सामाजिक परिवेश क़ी
अंतःक्रिया या अन्तःसम्पर्क से मन क़ी
आग जन्म लेती है
शरीर में है मन की सुलगती आग --
अहंकार उसी आग का अपरिहार्य धुआं है
सारा अंतर ध्यान मन को देखे अहंकार को
पकड़ने क़ी कोशिश काम की नही
.............................................. अरुण
Comments
achhe vichar rakhe he aap ne