ध्यान- प्रकाश

केवल सुन-पढ़ लिया है कि
भीतर है स्वच्छ नीला असीम आकाश
पर जब देखा भीतर दिखा
घना कुहरा,
इतना गहरा और सख्त कि
कुहरा ही कुहरे को देखे
बस कुहरा ही कुहरा
भीतर के आकाश को छुपा देता कुहरा
बाहर के प्रकाश को ग्रस लेता कुहरा

मनुष्य के सारे विचार कुहरे जैसे ही हैं
कुहरे जैसा ही है उनका वजूद
ध्यान -प्रकाश की मौजूदगी में ही विचार छट सकतें है
ध्यान प्रकाश ही बाहरी दुनिया पे पड़े
विचार- आच्छादन को
गला सकता है
..................................................... अरुण

Comments

बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.

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