सृष्टि-सागर

आदमी-

सृष्टि-सागर की

एक लहर है

पर इस लहर ने

अपने को सागर से

अलग माना

और इसीलिए

इतनी सारी उलझने, गफलत, भ्रम और

सारे संघर्ष पैदा हुए

.................................. अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
बहुत सही!

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के